मीरां: मुक्ति की साधिका

संपादक- मीरा कांत

संस्करण -2002

मूल्य -465 ₹

निदेशक, प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार पटियाला हाउस, नई दिल्ली -110001 द्वारा प्रकाशित

‘ताना-बाना'(भूमिका से)

स्त्री -जाति के माननीय अधिकारों की चेतना का मुखरित भारतीय संदर्भ लगभग 200 वर्ष पुराना है। कुछ और पीछे चले तो नितांत  व्यक्तिगत स्तर पर अपेक्षाकृत  धीमे स्वर में ऐसे प्रयास यहां-वहां मिल जाते हैं। इन गुजरे हुए मील के पत्थरों की एक जीवंत स्मृति  छाया है मीराबाई का जीवन और उनका काव्य। हिंदी साहित्य के भक्ति युग में उपेक्षित अगोचर नारी को एक नई पहचान और नई मर्यादा देने का काम किया था मीराबाई ने।

मीरा कांत जी ने अपनी पुस्तक मीरा मुक्ति की साधिका पुस्तक में  मीरा के  विभिन्न आवश्यक विषयों पर चर्चा की है ।

‘दूसरों न कोई’

विषय पर मीराबाई को हिंदी साहित्य की प्रथम प्रतिष्ठित कवयित्री होने का अपूर्व गौरव प्राप्त है ।भक्तिकाल की इस वीणा ने साहित्य को वह रागिनी दी जिसमें विभिन्न पंथों के विवादी स्वरों को समरस बना कर भक्ति भाव को रूढ़िबद्ध बंटवारे से मुक्त किया। विभिन्न सुंदर सचित्रों द्वारा मीरा कांत जी ने पुस्तक को सजाया हैं,साथ ही मीराबाई के विभिन्न पदों का संचयन कर सचित्र-सुनियोजित ढंग वर्णन किया गया है । ज्ञानवर्धक होने के साथ  मीराबाई के विभिन्न चित्र जो नागरी प्रचारिणी सभा आदि संस्थाओं ,विभिन्न स्थानों से प्राप्त कर पुस्तिका में संचित कर एक नया आकार दिया हैं।