मीरा का सौन्दर्यबोध

प्रधान सम्पादक : डाॅ. रणजीतसिंह गठाला

सम्पादक : (डाॅ.) ओम् आनन्द सरस्वती

प्रकाशक : मीरा स्मृति संस्थान, प्रतापनगर सिंधी काॅलोनी, चित्तौड़गढ़

संस्करण : प्रथम 2004

विगत पाँच शताब्दियों से अप्रतिम कृष्ण-भक्त और सन्त मीराबाई ने सम्पूर्ण भारत को और विश्व के अधिकांश देशों को अपने दिव्य संदेश से अभिभूत किया है। मीरा की कर्मस्थली एवं भावस्थली चित्तौड़गढ़ में ‘मीरा स्मृति संस्थान’ गत अनेक वर्षों से मीरा के वाङ्मय के विविध पक्षों पर विचार-विमर्श करने हेतु सकारात्मक प्रयास करता रहा है।

राष्ट्रीय उपनिषदों की परम्परा में संस्थान द्वारा पच्चीस एवं छब्बीस दिसम्बर सन् दो हजार एक को चित्तौड़गढ़ में ‘मीरा का सौन्दर्यबोध’ जैसे अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय पर राष्ट्रीय उपनिषद् का संयोजन तत्कालीन जिला कलेक्टर एवं मीरा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष श्री रामरख, आई.ए.एस. के सुयोग्य नेतृत्व में किया गया था।

(1) सौन्दर्यबोध की तात्त्विक मीमांसा

1. ‘सौन्दर्य’: शब्द और व्याप्ति

2. सौन्दर्यानुभूति

3. सौन्दर्य-दृष्टि से उपादान

4. सौन्दर्य का भौतिकवादी दृष्टिकोण

5. सौन्दर्य का आध्यात्मवादी दृष्टिकोण

(2) मीरा-काव्य में वस्तुगत सौन्दर्य

6. मानव-सौन्दर्य

7. वस्तुगत सौन्दर्य के तत्त्व

(3) मीरा-काव्य में कल्पनागत सौन्दर्य

(4) मीरा-काव्य में भावगत सौन्दर्य

(5) मीरा-काव्य में उदात्ततागत सौन्दर्य

(6) मीरा-काव्य में अभिव्यक्तिगत सौन्दर्य

(7) मीरा के सौन्दर्यबोध में मूल्यविधान

(8) मीरा-काव्य की सौन्दर्यबोधात्मक उपलब्धि

इन आठ भागों में विभाजित बत्तीस उपविभागों के बिन्दुओं पर अनेक विद्वानों के आलेख पुस्तक में विद्यमान हैं। इसमें मूत्र्तरूप ‘मीरा का सौन्दर्यबोध’ शीर्षक यह ग्रन्थ प्रस्तुत करते हुए मीरा स्मृति संस्थान अत्यन्त गौरव तथा हर्ष की अनुभूति कर रहा है। हमारी पूर्ण आस्था है कि यह ग्रन्थ मीराबाई के रचना-संसार को समझने हेतु सभी जिज्ञासुओं के लिए सहायक सिद्ध होगा।

‘सौन्दर्यबोध’ अत्यन्त व्यापक शब्द है। ‘सुन्दर’ और ‘असुन्दर’ की कोई विभाजक रेखा अद्यावधि सर्वस्वीकृत नहीं है। सभी विद्वान् जानते हैं कि ‘सौन्दर्य’ एक बहुआयामी शब्द है। ‘सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्’ के ‘सुन्दर’ शब्द की भाववाचक संज्ञा ही ‘सौन्दर्य’ है। अंग्रेजी में सौन्दर्य का वाचक शब्द ‘ब्यूटी’ है जो ‘बी’ तथा ‘टी’ भाववाचक प्रत्यय से बना है। ब्यूटी का आॅक्सफोर्ड डिक्शनरी’ में कोषगत अर्थ इस प्रकार है-‘वह गुण या गुणों का संश्लेष, जो इन्द्रियों को तीव्र आनन्द प्रदान करता है।