मीरा के काव्य में प्रेम और भक्ति की युगांतकारी भूमिका

मीराबाई की गणना भारत के प्रधान भक्तों में की जाती है। कृष्ण की भक्ति साहित्य का भक्तिकाल में एक विशिष्ट स्थान है। मीरा कृष्ण भक्त रचनाकार कवि थी‌।वह सांसरिक बंधनों से निराश होकर श्री कृष्ण की शरण ली और प्रेम तथा भक्ति के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाया।उनकी कविताओं में स्त्री पराधीनता के प्रति एक गहरी टीस दिखाई देती है। जो भक्ति के रंग में रंग कर और गहरी हो जाती है‌।यह बचपन से ही श्री कृष्ण भक्ति में रुचि लेने लगी थी। प्रया: मंदिरों में जाकर उपस्थित भक्तों और संतों के बीच श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति के सामने आनंदमगन होकर नाचती और गाती थी। मीरा एक का व्यक्तित्व एक तरह से पूरी व्यवस्था को चुनौती देने वाला रहा।समाज की जड़ता को तोड़कर स्वच्छन्दता की राह दिखाने वाली मीरा ने तत्कालीन  सामन्ती समाज व्यवस्था के बंधनों को निडरता से तोड़कर अपने प्रिय के प्रति प्रेम को व्यक्त किया था। “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोय, तो एक के स्वीकार में पूरी व्यवस्था के निषेध का क्रांतिकारी दर्शन घटित दिखाई देता है।” मीराबाई का काव्य उनके हृदय से निकल सहज प्रमोंच्छवास का सारा रूप है। “बिहारिन बावरी सी भई। ऊंची चढ़ी अपने भवन में टेरत हाय ढई।।

ले अंचरा मुख अंसुवन पोंछत उघरे मात सही।मीरा के प्रभु गिरिधर नागर बिछूरत कछु न कहीं।।

भक्तिकालीन काव्यमें केवल मीराबाई और रत्नावली जैसी नारियों की रचनाओं ने ही स्त्री कामान बढ़ाया है। वरना तो पुरुषों ने स्त्री को एक विकार के अतिरिक्त कुछ नहीं समझा। इसी तरह आधुनिक युग की मीरा के रूप में महादेवी वर्मा को देखा जाता है।और उनके काव्य में भी स्त्री प्रेम भानूभूतिपरक काव्य रचना की है।डॉ रवि रंजन के अनुसार वस्तुतः महादेवी वर्मा के प्रेमानुभूति गीतों को हम ऐतिहासिक धारावाहिक तथा   तद्युगीन नारी चेतना से काटकर नहीं समझते।”अनामिका भी इसी बात की पुष्टि करती हैं,” महादेवी वर्मा के कई गीत रहस्यवादी स्वरुप का खंडन करते हुए उन्हें प्रखर स्त्रीवादी विद्रोह का तेज देते हैं।”वे स्वयं साधना की आग में जलकर सामाजिक जीवन को अधिक सुखद और मंगलमय बनाना चाहती है:- “दुख प्रति निर्माण उन्माद,ये अमरता नापते पद बांध देंगे अंक संस्कृति से तिमिर में स्वर्ण बेला।”

मीरा स्वर्ण समाज की थी और फिर राणा कुल की पुत्रवधु इसलिए उनका सामान्य लोगों के बीच  उठना-बैठना उस सामाजिक व्यवस्था को असहन  था जिसमें नारी पति के मरने पर या तो सती हो जाती थी या घर की चारदीवारी के भीतर वैधव्य  झेलने के लिए  अभिशप्त थी। मीरा को भक्त होने के लिए लोक लाज छोड़नी पड़ी और यही बात राणा को खलती थी। लोक- लाज तजने की बात मीरा की कविताओं में बार-बार आती है। मीरा के बारे में कहा जाता है:-  “लोक -लाज छोड़ संतों में बैठ- बैठ खोई।”

मीरा ने गिरधर की भक्ति व प्रेम के लिए वीष के प्याले को भी पी लिया वह परमात्मा के प्रति उनकी भक्ति में इतनी लीन थी की दुनिया की व शारीरिक कष्टों की भी परवाह नहीं की क्योंकि वह अपने प्रियतम के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थी। मीरा ने अपने इष्ट देवता गिरधर का जो रूप निमित किया है,वह अत्यंत मोहक है। मीरा के रूप चित्रण की यह भी विशेषता है कि वह प्राय: गत्वर होता है।गिरधर नागर को प्राय: सचेष्ट अंकित किया जाता हैं या तो वह मुरली बजाते हैं या मंद मंद मुस्काए हैं या मीरा की गली में प्रवेश करते हैं।

“जिन चरन धारायों माधव हरन। दासि मीरा लाल गिरधर अगम तारण तरना।”

मीरा नारी सुलभ लज्जा के कारण उनसे सीधे मुंह बात बहुत कम करती हैं।उनके सामने न रहने पर यानी वियोगावस्था में भी उससे वार्तालाप करते हैं अनुनय विनय करती हैं,विरह मीरा के जीवन का सबसे बड़ा यथार्थ और यही पीड़ा तड़प और भी उनकी उनके प्रेम भाव का हिस्सा है। वह अपने प्रभु से पीड़ा के ताप से मुक्त होना चाहती है।वेदना की सच्चाई का एक लक्षण यह है कि व्यक्ति उससे मुक्ति के लिए छटपटाए।मुक्ति संभव न हो तो भी मनुष्य मुक्त अवस्था का स्वप्न देखता है। मीरा के यहां विरह वेदना उनका यथार्थ है तो कृष्ण से मिलन उनका सपना है।मीरा के जीवन के यथार्थ की प्रतिनिधि पंक्तियां हैं:- अंसुवन जल सींचि -सींचि ,प्रेम-बेलि बोई।

मीरा के काव्य पर निर्गुण- सगुण दोनों साधनाओं का प्रभाव है। उन पर नाथ मत का भी प्रभाव दिखाई पड़ता है।मीरा की कविताएं शिष्ट समाज के साथ-साथ राजस्थान के भीलो में भी बहुत लोकप्रिय है।

 

संदर्भ -ग्रंथ सूची:-

  1. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास- डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी 2010 ओरिएंटल पब्लिकेशन दिल्ली

2.हिंदी साहित्य का इतिहास आचार्य रामचंद्र शुक्ल,2005विश्वभारती प्रकाशन नागपुर

3.अनामिका का काव्य आधुनिक स्त्री-विमर्श -मंजु रूस्तगी वाणी प्रकाशन दिल्ली

4.मीराबाई की भक्ति साधना- डॉ श्रीमती सुरेखा शहापुरे श्रुति पब्लिकेशन 2007

4.मीरा मेरी यात्रा -डॉ मंजु रानी 2013सुभांजलि प्रकाशन, कानपुर

5.Strishaktimeers.com वेवसाईट- डॉ मंजु रानी, दिल्ली