मीरा: मेरी यात्रा

लेखिका : मंजु रानी
प्रकाशक : सुभांजलि प्रकाशन, कानपुर
संस्करण : 2013

‘‘राधे-राधे सब बोलते हैं मीरा-मीरा कब बोलेंगे,
त्याग, सहनशीलता की मूर्ति को कब इस जग मंे लोग सराहेंगे?’’

जोधपुर से मरुधर एक्सप्रेस, जो जोधपुर से मेड़ता मीरा के मन्दिर तक पहुंचाने का काम करती है, इस यात्रा में मेरी साथी, मार्गदर्शक बनी। यह सुबह 9:50 से जोधपुर रवाना होती है, आगे किसी दुर्घटना की वजह से 1 घण्टा लेट चली। मन में उत्साह लिए ठीक 10:50 पर हम ट्रेन में बैठ गए। इस ट्रेन से हम मेड़ता रोड जंक्शन पहुंचे। मुझे लगा कि रेत ही रेत होने के कारण ही रेगिस्तान नाम पड़ा है। ट्रेन में बार-बार पानी वाला आकर उस तपती गर्मी के बचने का निमन्त्रण दे रहा था। ठण्डा पानी, फ्रूटी, पेप्सी देखकर गर्मी और ज्यादा लगने लगी थी। पानी का क्या महत्व होता है, उस महत्व होता है, उस ट्रेन की यात्रा से पता चलता।

खिड़की तो मैंने खोल रखी है, ताकि मुझे यहाँ के सुन्दर-सुन्दर नजारे देखने को मिलते रहें पर इसे अनुभव करने के लिए मुझे कुछ-कुछ रेत के कणों को अपने शरीर पर चिपकाना भी पड़ रहा है।

स्टेशन पर लोगों का जमावड़ा (भीड़) देखकर प्रतीत हो रहा है कि वे राजस्थान के सपूत ही हैं, जो बेहद गर्मी से भरी दोपहरी मंे स्टेशन पर बैठे हैं। स्त्रियां घाघरा-लुगड़ी पहनें, मुंह पर ओढ़नी से लम्बा घूंघट डाले अपने बच्चों को जल्दी-जल्दी ट्रेन में चढ़ा रही थीं।

अब अगला स्टेशन ‘पीपाड़ रोड’ आया है। दोपहर के लगभग 12 बज चुके हैं। धूप अपने पूरे जोश से धरती पर फैल चुकी है। मुझे तो बिना चश्मे में ऐसा लग रहा है, मानो एक साथ लाखों मरकरी जला दी गई हों। जैसे किसी अवसर पर वीडियोग्राफी करने वाला व्यक्ति वीडियोग्राफी करते समय बनाते समय अपने हाथ में लिए मरकरी को जलाये रहता है। शायद प्रकृति ने मुझे यहाँ से जुड़े रहने के लिए इतनी तेज धूप रूपी मरकरी की व्यवस्था की हो।

मेरी इस यात्रा का उद्देश्य मीराबाई पर पीएच.डी. का शोध-कार्य है, जिस कारण मैं यहाँ पर आई हूँ। वैसे कुछ वर्षों पहले मैं मम्मी और मेरी नानी जी के साथ पर्यटन बस में घूमने के लिए यहाँ आ चुके हैं, परन्तु उस समय मुझे मीरा मन्दिर में कुछ महत्त्वपूर्ण बात नहीं लगी थी। जो उत्साह, लगन और लालसा मेरे मन में आज है, वह उस समय नहीं थी।

पानी वाला ट्रेन में अपनी जीविका को चलाने के लिए श्रम कर रहा था दूसरी तरफ कुछ भिखारी भी बार-बार आकर भीख मांग रहे थे। कुछ तो वाकई में अपने हाथ-पैरों से लाचार थे, कुछ जानबूझकर लाचार बनने का ढोंग कर रहे थे।

अब ‘गोटन’ स्टेशन पर फिर एक बार ट्रेन रुकी। कुछ यात्री ट्रेन में चढ़े और कुछ जो अपनी यात्रा पूरी कर चुके थे, फौरन उतर गए। स्त्रियां बच्चों को गोद में लेकर ‘जल्दी चालो-जल्दी चालो’ बोलती हुई गाड़ी में चढ़ रही थीं। अब मुझे ‘मेड़ता रोड जंक्शन’ पहुंचने में केवल 10-15 मिनट और लगने वाले थे। खिड़की से बाहर देखते-देखते मैंने नील गायों को पेड़ों की छाया में बैठे हुए देखा, जिन्हें दिल्ली जैसे महानगर में देखना असंभव है। नील गाय सामान्यतः गाय की तरह ही होती हैं।

राजस्थान की धरती से जुड़ाव एवं एक स्त्री होने के कारण मैंने मीराबाई पर शोध कार्य करने का निश्चय किया। पूरी निष्ठा एवं लगन से मैं अपने शोध कार्य को नवीन रूप देना चाहती हूँ, अन्यथा जानकारियां तो लाइब्रेरी, पत्र-पत्रिकाओं से भी एकत्रित की जा सकती हैं लेकिन उस जगह जाना, जहाँ पर मीरा का महल है, मीरा स्मारक है, मीरा शोध-संस्थान है। यह सब मेरे शोध कार्य को और मौलिक, तथ्यपूर्ण एवं प्रासंगिक बनाते हैं। यह स्थान जहां पर है, वह ‘राव दूदागढ़’ के नाम से जाना जाता है जो मीरा के दादा के नाम पर रखा गया है।

रेलवे स्टेशन से एक रेल बस भी चलती है, जो मेड़ता सिटी जाती है। यह भारत की पहली रेल बस है, जिसमें लोग रेल की तरह ही सफर करते हैं। यह रेल बस सामान्य रोड पर न चलकर रेल की पटरी पर ही छुक-छुक करती दौड़ती है ठीक शिमला की ट्वाय ट्रेन जैसी। इस बस में ड्राइवर ने एक गाना भी चला रखा है, जो पुरानी फिल्म ‘प्रेम रोग’ का है-‘भंवरे ने खिलाया फूल, फूल तो ले गया राजकुंवर।’ मैं इस गाने का उल्लेख यहां इसलिए कर रही हूं क्योंकि इसमें मीरा द्वारा पिये गये विष के प्याले का जिक्र किया गया है यथा, ‘मीरा ने पिया विष का प्याला, विष को भी अमृत कर डाला’ जैसे सुन्दर दोहे संगीत के माध्यम से साफ सुनाई दे रहे हैं। यह संगीत मीरा के और भी निकट ले गया है मुझे। अब बस कुछ ही मिनट शेष हैं मुझे मीरा दर्शन के लिए।

इस ‘मीरा: मेरी यात्रा’ सम्पन्न हुई, जो बहुत ही सुखद, ज्ञानमयी रही। मीरा से मेरा नाता अब केवल शोधार्थी के रूप में ही नहीं बल्कि आत्मिक रूप से भी हो गया है। जैसे-जैसे मेरा शोध कार्य आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे मीरा से मेरा लगाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। मीरा मेरी आइडियल हैं। मैं खुश हूँ कि मुझे मीरा पर कार्य करने का सुअवसर मिला।

प्रस्तुत पुस्तक में 1. मीरा के काव्य का सामाजिक पहलू, 2. मीरा की कविता: प्रेम में निहितार्थ और हिंदी आलोचना, 3. मीरा-चर्चा में जैनेन्द्रीय सुनीता प्रसंग, 4. मीरा के अध्यात्म का समाजदर्शन और समाज दर्शन का अध्यात्म, 5. काव्यानुभूति की प्रामाणिकता, 6. साहित्य के इतिहास में मीरां, 7. मीराबाई की भाषा, 8. कृष्ण के प्रति मीरा का दृष्टिकोण, 9. मीरा के काव्य में संगीतात्मकता, 10. मीरा के काव्य में नारी मुक्ति की अवधारणा, 11. मीरां के प्रभु गिरधर नागर, 12. मरुप्रदेश की महारानी: प्रेम की दीवानी, विषयों का वर्णन हुआ है।