मीरा सुधा सिन्धु

पुस्तक : मीरा सुधा सिन्धु
सम्पादक : स्वामी आनन्द स्वरूप
प्रकाशक : श्री मीराँ प्रकाशन समिति एवं मुद्रक

मीरा सुधा सिन्धु 1006 पृष्ठों की वो गागर रूपी पुस्तक है जिसमें मीरा के सम्पूर्ण जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है।

मीरा क्या है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सम्पादक ने प्रथम खण्ड मीरा की जीवनी, मीरा काव्य, मीरा की उपासना, मीरा की योग्यता महत्वपूर्ण विषयों को रखा है। द्वितीय खण्ड में, मीरा के समस्त पदों पर भूमिका, समस्त पदों की वृहद् सूची आदि में सभी पहलुओं पर पदों का सुन्दर वर्णन किया है। साथ ही चित्रों के द्वारा मीरा काव्य का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है।

मीराँ की भक्तिमयी पद रचनाओं को अधिक से अधिक लोकप्रिय बनाने के प्रयोजन से स्वामीजी ने प्रत्येक विभाग के प्रारम्भ में तत्संबद्ध सारगर्भित भूमिका भी जोड़ दी है जिसके ‘आदिसूत्र’ उस विभाग का तत्त्वदर्शन निर्दिष्ट करते हैं। शब्दार्थों और भावार्थों के साथ संलग्न टिप्पणियाँ पदों का मूल तात्पर्य समझने में ‘मार्गदर्शिका’ का काम करती हैं। लेखक ने पाठान्तरों का उल्लेख कर यह तथ्य भी ध्वनित किया है कि मौखिक परम्परा में विकसित मीराँ की भजनावली ने किन-किन प्रदेशों की शब्दसम्पदा ग्रहण कर अपनी लोकप्रियता अर्जित की है। इस ग्रंथ का मनोयोगपूर्वक अध्ययन कर अनेक भावी शोधप्रज्ञ मीराँ की जीवनी तथा कृतियों को और भी अधिक उज्ज्वल रूप में अन्वेषित, संशोधित तथा परिवर्द्धित करने के दिशा-निर्देश प्राप्त कर सकते हैं।

मीरा सुधा सिन्धु ग्रंथ बड़ी ही तसल्ली के साथ लिखा गया है जिसकी भाषाशैली अत्यन्त ही सरल, सुबोध, सरस एवं प्रवाहमयी है। उसमें मीराँ के मूल पदों को जनसाधारण के बीच सुगम बनाने की क्षमता है। लेखक ने अकारादि क्रम से समस्त पदों की एक वृहद् सूची भी पुस्तक में जोड़ दी है जिसका विभाजन ‘विभाग’ शीर्षकों के अन्तर्गत संकलित पद संख्याओं के अनुसार किया गया है ताकि पाठकों को अपनी अभिरुचि के अनुरूप पदचयन करने में असुविधा न रहे। ग्रंथ के बीच-बीच यथोचित स्थानों पर ऐसे 16 चित्र भी जोड़े गये हैं जिनके रूपसौन्दर्य का तालमेल पदों के भाव-सौन्दर्य के साथ सहज भाव से जम जाता है।

कुल मिलाकर यह ग्रंथ मीराँ के भक्तिसिंधु के मंथन से निकला हुआ एक ऐसा अमृत कलश है जिसका रसपान कर सभी श्रेणियों के काव्यानुरागी भक्तजन मीराँ की भक्तिसाधना के साथ अपनी भावनाओं का तादात्म्य स्थापित कर अलौकिक आनंद की उपलब्धि कर सकते हैं। यह पुस्तक सभी दृष्टियों से पठनीय, संग्रहणीय एवं अनुकरणीय है।