स्त्री संघर्ष और मीरा (तब और अब)

लेखिका : डॉ. मंजु रानी

प्रकाशक : सुभांजलि प्रकाशन, कानपुर

संस्करण : 2011

भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अन्तर्गत नारी को सिर्फ एक वस्तु, संभोग और सन्तान की इच्छा पूरी करने वाली मादा समझा जाता है। यहाँ सेवा, उपयोग और वफादारी के बदले पुरुष स्त्री को उसी तरह सजाता, सुरक्षा देता और उसकी जिम्मेदारी लेता है। दूसरी ओर आज के समय एवं सन्दर्भ की ओर नजर डालें तो देख सकते हैं कि पुरुष कितना कामुकता एवं वासना का आदी बन गया है। समाज के कोण से देखें तो बलात्कार ही मात्र ऐसा अपराध है जिसमें समाज की दृष्टि बलात्कार करने वाले अपराधी के स्थान पर बलात्कार की शिकार हुई स्त्री पर टिकती है, कभी-कभी स्त्री ही दोषी ठहराई जाती है। सामाजिक अपमान स्त्री के हिस्से में आता है।

‘स्त्री संघर्ष और मीरा (तब और अब)’ पुस्तक की लेखिका मंजु रानी ने यह दर्शाने का सफल प्रयास किया है कि आज भी स्त्री का जीवन संघर्षात्मक है। वह अपनी आजादी, अपनी अस्मिता, अपनी पहचान एवं अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए हर क्षेत्र में संघर्ष कर रही है।

‘स्त्री संघर्ष और मीरा (तब और अब)’ पुस्तक के संदर्भ में इतना ही कहना है कि मीरा ने जब जन्म लिया तब से अब तक कई मीरा इस धरती पर जन्म ले चुकी हैं और अपने जीवन की अंतिम यात्रा पूरी भी कर चुकी हैं किन्तु मीरा के समय में जो प्रथा, कुरीतियां, भेदभाव थे यथावत आज भी बनी हुई हैं। स्त्री शोषण, बलात्कार, कन्या भ्रूण हत्या, अशिक्षा जैसी कुरीतियां आज भी हमारे समाज में चरम पर विद्यमान हैं।

माँ, बहन और बेटी

एक स्त्री ही होती है

जो निरन्तर रूप बदलती।

जीवन की दुःख, तकलीफों

को अपनी मुस्कराहट से भरती।

प्रस्तुत पुस्तक में मुख्य रूप से स्त्री के विभिन्न संघर्षों पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक का मात्र उद्देश्य यह है कि नारी के गुणों को देखते हुए गहराई से मनन किया जाए तो साक्षात् देवी रूप एवं ईश्वरीय रूप सामने आता है। नारियों पर अत्याचार करते हुए अत्याचारी पुरुष यदि एक बार भी नारी गुणों का अध्ययन कर लेता है तो वह अत्याचार नहीं कर सकता, ऐसा मेरा विश्वास है।

नारी की प्रकृति ईश्वरीय है इसमें कोई शक नहीं है। वह पक्षी की तरह आकाश में आजाद उड़ना या घूमकर इतनी खुशी नहीं होगी जितनी वह पति, बच्चों और परिवार में बँधकर। सारी रात स्वयं गीले बिस्तर पर सोकर और अपने बच्चों को सूखे में सुलाकर उसे सुख मिलता है। वह अपने पति की पसन्द को अपनी पसन्द मानकर आनन्दित होती है।

यह पुस्तक पुरुष समाज रूपी समुद्र में भटकी हुई स्त्री के लिए सचमुच एक आकाशदीप है तो नारीवाद के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक कुशल सारथी!

पुस्तक में उन सभी स्त्रियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करना है जो स्त्री होने का भाग्य मानकर घर की चाहरदीवारों में ही अपना स्वर्ग ढूंढ लेती है। अपने अन्दर छिपी शक्ति को बाहर निकालने और अपने को कमजोर न समझ जीवन पथ पर संघर्षरत्, कर्मरत, उन्नति की ओर अग्रसर होने का सुप्रयास करें।

स्त्री हूँ संघर्ष करूंगी

जीते जी अब नहीं मरूंगी

प्यार के बदले प्यार करूंगी

ईंट का जवाब पत्थर से दूंगी।