- 16. म्हाराँ री गिरधर गोपाल दूसराँ णाँ कूयाँ
- 17. माई साँवरे रँग राँची
- 18. मैं तो गिरधर के घर जाऊँ
- 19. माई री म्हा लियाँ गोविन्दाँ मोल
- 20. म्हाँ गिरधर रंग राती
- 21. बड़े घर तालो लागाँ री
- 22. मीराँ लागौ रंग हरी
- 23. आली सहेल्याँ रत्नी कराँ हे
- 24. बरजी री म्हाँ स्याम विणा न रह्याँ
- 25. माई म्हाँ गोविन्दा
- 26. नहिं सुख भावै थारो देसलड़ो रँगरूड़ो
- 27. राणाजी थे क्याँने राखो म्हाँसूँ बैर
- 28. सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो काँई करलेसी
- 29. पग बाँध घूँघर्याँ णाच्याँ री
- 30. माई म्हाँ गोविन्द गुण गाणा
राग झिंझोटी
म्हाराँ री गिरधर गोपाल दूसराँ णाँ कूयाँ।
दूसराँ णाँ कूयाँ साधाँ सकल लोक जूयाँ।।टेक।।
भाया छाँड्याँ, बन्धा छाँड्या सगाँ सूयाँ।
साधाँ ढिंग बैठ बैठ, लोक लाज खूयाँ।
भगत देख्याँ राजी ह्ययाँ, जगत देख्याँ रूयाँ।
अँसुवाँ जल सींच सींच प्रेम बेल बूयाँ।
दध मथ घृत काढ़ लयाँ डार दया छूयाँ।
राणा विषरो प्यालो भेज्याँ पीय मगण हूयाँ।
मीराँ री लगण लग्याँ होणा हो जो हूयाँ।।16।।
राग पटमंजरी
माई साँवरे रँग राँची।।टेक।।
साज सिंगार बाँध पग घूँघर, लोकलाज तज णाँची।
गयाँ कुमत लयाँ साधाँ संगत स्याम प्रीत जग साँची।
गायाँ गायाँ हरि गुण निसदिन, काल ब्याल री बाँची।
स्याम विणा जग खाराँ लागाँ, जगरी बाताँ काँची।
मीराँ सिरि गिरधर नट नागर भगति रसीली जाँची।।17।।
राग गुनकली
मैं तो गिरधर के घर जाऊँ।।टेक।।
गिरधर म्याँरो साँचो प्रीतम, देखत रूप लुभाऊँ।
रैण पड़ै तब ही उठि जाऊँ, भोर भये उठि आऊँ।
रेण दिना वाके सँग खेलूँ, ज्यूँ त्यूँ वाहि लुभाऊँ।
जो पहिरावै सोई पहिरूँ, जो दे सोई खाऊँ।
मेरी उणकी प्रीत पुराणी, उण विण पल न रहाऊँ।
जहँ बैठावे तितही बैठूँ, बेचे तो बिक जाऊँ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, बार बार बलि जाऊँ।।18।।
राग माँड़
माई री म्हा लियाँ गोविन्दाँ मोल।।टेक।।
थें कह्याँ छाणे म्हाँ काचोड्डे, लियाँ बजन्ता ढोल।
थें कह्याँ मुँहौधो म्हाँ कह्याँ सुस्तो, लिया री तराजाँ तोल।
तण वाराँ म्हाँ जीवन वाराँ, वाराँ अमोलक मोल।
मीराँ कूँ प्रभु दरसण दीज्याँ, पूरब जणम को कोल।।19।।
राग धानी
म्हाँ गिरधर रंग राती।।टेक।।
पँचरँग चोला पहर्या सखी म्हाँ, झिरमिट खेलण जाती।
वाँ झिरमिट माँ मिल्या साँवरो, देख्याँ तण मण राती।
जिणरो पियाँ परदेस बस्याँरी लिख लिख भेज्याँ पाती।
म्हारा पियाँ म्हारे हीयड़े बसताँ णा आवाँ णा जाती।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, मग जोवाँ दिण राती।।20।।
राग पीलू बरवा
बड़े घर तालो लागाँ री, पुरबला पुन्न जगावाँरी।।टेक।।
झीलर्याँ री कामणा म्हाँरो, डाबराँ कुण जावाँरी।
गंगा जमणा काम णा म्हारे, म्हाँ जावाँ दरियावाँरी।
हेल्या मेल्याँ कामणा म्हारे, म्हा मिल्या सरदाराँरी।
कामदाराँ सूँ काम णाँ म्हारे, जावाँ म्हा दरबाराँरी।
काथ कथीर सूँ काम णाँ म्हारे, चढ़स्याँ धणरी सार्याँरी।
सोणा रूपाँ सूँ काम णा म्हारे, हीराँ रो बौपाराँरी।
भाग हमारो जाग्याँ रे, रतणाकर म्हारी सीर्याँरी।
अम्रत प्याली छाड्याँ रे कुण पीवाँ कड़वाँ नीरारी।
भगत जणाँ प्रभु परचाँ पावाँ, जावाँ जगताँ दूर्यारी।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर मणरथ करस्याँ पूर्यारी।।21।।
राग पटमंजरी
मीराँ लागौ रंग हरी, औरन अँटक परी।।टेक।।
चूडो म्हाँर तिक अरु माला, सील बरत सिंणगारी।
और सिंगार म्हाँरे दाय न आवै, यों गुरु ग्यान हमारी।
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हें तो, गुण गोविन्द का गास्याँ।
जिण मारग म्हाँरा साध पधारै, उण मारग म्हे जास्याँ।
चोरी न करस्याँ जिव न सतास्याँ, कोई करसी म्हाँरो कोई।
गज से उतर के खर नहिं चढ़स्याँ, ये तो बात न होई।।22।।
राग हमीर
आली सहेल्याँ रत्नी कराँ हे, पर घर गवण निवारि।
झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा आभूषणा री, साँची पियाजी री पोति।
झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखणी चीर।
साँची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर।
छप्पण भाग बुहाई दे हे, इन भोगनि में दाग।
लूण अलूणों भलो हे, अपणे पियाजी को साग।
देखि विराणै निवाँण कूँ हे, क्यूँ उपजावै खीज।
कालर अबणो ही भलो हे, जामें निपजै चीज।
छैल विराणो लाख के हे, अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारताँ हे, भला न कहसी कोइ।
बर हीणों भलो हे, कोढ़ी कुष्टी कोइ।
जाके संग सीधारताँ हे, भला कहै सब लोइ।
अविनासी सूँ बालवाँ हे, जिनसूँ सीँची प्रीत।
मीराँ कूँ प्रभु मिल्या हे, एही भगति की रीत।।23।।
राग कामोद
बरजी री म्हाँ स्याम विणा न रह्याँ।।टेक।।
साधाँ संगत हरि सुख पास्यूँ जगसूँ दूर रह्याँ।
तण मण म्हाराँ जावाँ जास्याँ, म्हारो सीस लह्याँ।
मण म्हारो लग्याँ गिरधारी जगराँ बोल सह्याँ।
मीराँ रे प्रभु हरि अविनासी, थारी सरण गह्याँ।।24।।
राग पूरिया कल्याण
माई म्हाँ गोविन्दा, गुण गास्याँ।।टेक।।
चरणाम्रत रो नेम सकारे, नित उठ दरसण जास्याँ।
हरि मन्दिर माँ निरत करास्याँ, घूँघर्याँ धमकास्याँ।
स्याम नाम रो झाझ चलास्याँ, भवसागर तर जास्याँ।
यो संसार बीड़ रो काँटो, गेल प्रीत अँटकास्याँ।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, गुन गावाँ सुख पास्याँ।।25।।
राग खम्माच
नहिं सुख भावै थारो देसलड़ो रँगरूड़ो।।टेक।।
थाँरे देसाँ में राणा साध नहीं छै, लोग बसै सब कूड़ो।
गहणाँ गाँठी राणा हम सब त्याग्या, त्याग्यो कर रो चूड़ो।
काजल टीकी हम सब त्याग्या, त्याग्यो छै बाँधन जूड़ो।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, वर पायो छै पूरो।।26।।
राग अगना
राणाजी थे क्याँने राखो म्हाँसूँ बैर।।टेक।।
थें तो राणाजी म्हाँने इसड़ा, लागो ज्यों ब्रच्छन में कैर।
महल अटारी हम सब त्यागे, त्याग्यो थारो बसनो सहर।
कागज टीकी राणा हम सब त्याग्या भगवीं चादर पहर।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, इमरित कर दियो जहर।।27।।
राग पहाड़ी
सीसोद्यो रूठ्यो तो म्हाँरो काँई करलेसी।
म्हें तो गुण गोविन्द का गास्याँ, हो माई।।टेक।।
राणोजी रूठ्याँ बाँरो देस रखासीं।
हरि रूठ्याँ कुम्हलास्याँ, हो माई।
लोक लाज की काण न मानूँ।
निरभै निसाणाँ धुरास्याँ हो माई।
स्याम नाम रो झाझ चलास्याँ।
भवसागर तर जास्याँ हो माई।
मीराँ सर्ण सँवल गिरधर की।
चरण कँवल लपटास्याँ, हो माई।।28।।
राग पीलू
पग बाँध घूँघर्याँ णाच्याँ री।।टेक।।
लोग कह्याँ मीरा बावरी, सासु कह्याँ कुलनासी री।
विख रो प्यालो राणा भेज्याँ, पीवाँ मीराँ हाँसाँ री।
तण मण वार्याँ परि चरिणामाँ दरसण अमरित प्यासाँ री।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, थारी सरणाँ आस्याँ री।।29।।
राग जौनपुरी
माई म्हाँ गोविन्द गुण गाणा।। टेक।।
राजा रूठ्याँ नगरी त्यागाँ, हरि रूठ्याँ कठ जाणा।
राणो भेज्या विख रो प्यालो, चरणामृत पी जाणा।
काला नाग पिटारîाँ भेज्या, सालगराम पिछाणा।
मीराँ गिरधर प्रेम दिवाँणी, साँवल्या वर पाणा।।30।।