- 31. मीराँ मगन भई हरि के गुण गाय
- 32. हेली म्हाँसूँ हरि बिनि रह्यो न जाय
- 33. जाण्याँ णा प्रभु मिलण विध क्याँ होय
- 34. जोगियाजी निसदिन जोवाँ थारी बाट
- 35. अखयाँ तरशाँ दरसण प्यासी
- 36. जोगी मत जा मत जा मत जा
- 37. थें जीम्या गिरधरलाल
- 38. छोड़ मत जाज्यो जी महाराज
- 39. ऐसी लगन लगाइ कहाँ तू जासी
- 40. पिया म्हारे नैणाँ आगाँ रहज्यो जी
- 41. थाँणे काँई काँई बोल सुणावा म्हाँरा साँवराँ गिरधारी
- 42. देखाँ माई हरि मण काठ कियाँ
- 43. जोगिया से प्रीत कियाँ दुख होई
- 44. जोगियारी प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मूल
- 45. कोई दिन याद करोगे रमता राम अतीत
राग खम्माच
मीराँ मगन भई हरि के गुण गाय।।टेक।।
साँप पिटारा राणा भेज्यो, मीराँ हाथ दियो जाय।
न्हाय धोय जब देखण लागी, सालिगराम गई पाय।
जहर का प्याला राणा भेज्या, अमृत दीन्ह बनाय।
हाथ धोय जब पीवण लागी, हो गई अमर अँचाय।
सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो माराँ सुलाय।
साँझ भई मीराँ सोवण लागी, मानो फूल बिछाय।
मीराँ के प्रभु सदा सहाई राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती गिरधर पर बलि जाय।।31।।
राग पहाड़ी
हेली म्हाँसूँ हरि बिनि रह्यो न जाय।।टेक।।
सास लड़े मेरी नन्द खिजावै, राणा रह्या रिसाय।
पहरो भी राख्यो चैकी बिठार्यों, ताला दियो जड़ाय।
पूर्व जनम की प्रीत पुराणी, सो क्यूँ छोड़ी जाय।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, अवरु न आवे म्हाँरी दाय।।32।।
वियोग
राग लोहानी
जाण्याँ णा प्रभु मिलण विध क्याँ होय।।टेक।।
आया म्हारे आँगणाँ फिर गया मैं जाण्याँ खोय।
जोवताँ मग रैण बीताँ दिवस बीताँ जोय।
हरि पधाराँ आँगणाँ गया मैं अभागण सोय।
विरह व्याकुल अनल अन्तर कल णाँ पड़ता दोय।
दासी मीराँ लाल गिरधर मिल णा बिछड्या कोय।।33।।
जोगियाजी निसदिन जोवाँ थारी बाट।।टेक।।
पाँव न चालै पंाि दुहेलो, आढा औघट घाट।
नगर आइ जोगी रम गया रे, मो मन प्रीति न पा।
मैं भोली भोलापन कीन्हों राख्यौ नहिं बिलमाइ।
जोगिया कूँ जोवत बोहो दिन बीता, अजहूँ आयो नाहिं।।
विरह बुझावण अन्तरि आवो, तपन लगी तन माहिं।
कै तो जोगि जग माँ नाहीं कैर बिसारी मोइ।
काँइ करूँ कित जाऊँरी सजनी नेण गुमायों रोइ।
आरति तेरी अन्तरि मेरे, आलो अपनी जाणि।
मीराँ व्याकुल बिरहिणी रे, तुम बिनि तलफत प्राणि।।34।।
अखयाँ तरशाँ दरसण प्यासी।
मग जोवाँ दिण बीताँ सजणी, णैण पड्या दुखरासी।
डरा बैठ्याँ कोयल बोल्या, बोल सुण्या री गासी।
कड़वा बोल लोक जग बोल्या, करस्याँ म्हारी हाँसी।
मीराँ हरि रे हाथ विकाणी, जणम जणम री दासी।।35।।
अनुनय
जोगी मत जा मत जा मत जा, पाँइ परूँ मैं तेरी चेरी हौं।।टेक।।
प्रेम भगति को पैड़ो ही न्यारो हमकूँ गेल बता जा।
अगर चँदण की चिता रचाऊँ, अपणे हाथ जला जा।
जल बल भई भस्म की ढेरी, अपणे अंग लगा जा।
मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर जोत में जोत मिला जा।।36।।
थें जीम्या गिरधरलाल।
मीराँ दासी अरज कर्याँ छै, म्हारों लाल दयाल।
छप्पण भोग छतीसाँ विंजण, पावाँ जण प्रतिपाल।
राजभोग आरोग्याँ गिरधर, सणमुख राखाँ थाल।
मीराँ दासी सरणा ज्याशी, कीज्याँ वेग निहाल।।37।।
छोड़ मत जाज्यो जी महाराज।।टेक।।
म्हा अबला बल म्हारों गिरधर, थे म्हारों सरताज।
म्हा गुणहीन गुणागर नागर, म्हा हिवड़ों रो साज।
जग तारण भौ भीत निवारण, थें राख्याँ गजराज।
हार्या जीवन सरण रावली, कठे जावाँ ब्रजराज।
मीराँ रे प्रभु और णा काँई, राखा अबरी लाज।।38।।
राग बिहागरा
ऐसी लगन लगाइ कहाँ तू जासी।।टेक।।
तुम देख्याँ बिन कल न पड़त है, तलफ तलफ जिव जासी।
तेरे खातिर जोगण हूँगी, करवत लूँगी कासी।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, चरण कँवल की दासी।।39।।
राग बिलावल
पिया म्हारे नैणाँ आगाँ रहज्यो जी।।टेक।।
नैणाँ आगाँ रहज्यो म्हाँणे भूल णा जाज्यो जी।
भौ सागर म्हाँ बूड़îा चाहाँ, श्याम को सुध लीज्यो जी।
राणा भेज्या विष रो प्यालो, थे इमरत कर दीज्यो जी।।40।।
राग सुख सोरठ
थाँणे काँई काँई बोल सुणावा म्हाँरा साँवराँ गिरधारी।।टेक।। पूरब जणम री प्रीति पुराणी, जावा णाँ गिरधारी। सुन्दर बदन जोवताँ साजण, थारी छबि बलिहारी। म्हारे आँगण स्याम पधाराँ, मंगल गावाँ नारी। मोती चैक पुरावाँ णेणाँ, तण मण डाराँ वारी। चरण सरण री दासी मीराँ, जणम जणम री क्वाँरी।।41।।उपालम्भ
राग सुख सोरठ
देखाँ माई हरि मण काठ कियाँ।।टेक।।
आवण कह गयाँ अजा ण आयाँ, कर म्हाणे कोल गयाँ।
खाण पाण सुध बुध सब बिसर्याँ, काँई म्हारो प्राण जियाँ।
थारो कोल बिरुद जग थारो, थे काँई बिसर गयाँ।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, थे बिण फटा हियाँ।।42।।
जोगिया से प्रीत कियाँ दुख होई।।टेक।।
प्रीत कियाँ सुख ना मोरी सजनी, जोगी मित न कोई।
रात दिवस कल नाहिं परत है, तुम मिलियाँ बिनि मोई।
ऐसो सूरत या जग माँही फेरि न देखी सोई।
मीराँ रे प्रभु कब रे मिलोगे, मिलियाँ आँणद होई।।43।।
जोगियारी प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मूल।।टेक।।
हिल मिल बात बणावत मीठी, पीछे जावत भूल।
तोड़त जेज करन नहिं सजनी, जैसे चंबेली के फूल।
मीराँ कहै प्रभु तुमरे दरस बिन, लगत हिवड़ा सूल।।44।।
राग सोरठ
कोई दिन याद करोगे रमता राम अतीत।।टेक।।
आसण माँड़ि अडिग होय बैठा, याही भजन को रीत।
मैं तो जाँणू जोगी संग चलेगा, छाँड़ि गया अधबीच।
आत न दीसे जात न दीसे, जोगी किसका मीत।
मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर, चरणन आवे चीत।।45।।