मीरा बाई और श्री अरविंदो

पुस्तक-मीराबाई और श्री अरविंदो , लेखिका -रुपाली सैनी अस्सिटेंट प्रोफेसर अंग्रेजी विषय (श्री गंगानगर राजस्थान)और पढ़ें

मीरा के प्रति स्नेह के भाव बचपन से ही घर के वातावरण में तैयार हो चुका था. माँ परिवार में हमेशा आध्यात्मिक माहौल बनाकर रखती रही हैं. बड़ों का आदर सम्मान नाना जी से दो महीने की स्कूल की छुट्टियों में सीखकर आते थे. घर में सबसे छोटी होने के कारण सभी का लाड़-प्यार मुझे भरपूर मिलता रहा. बड़ी दीदी जिनसे कई बार गलतियों पर डांट के साथ प्यार के मार भी खायी. दो बड़े भाई जो हमेशा से ढाल बनकर जीवन में सहयोगी बने रहे. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मीरा तक पहुँचने में केवल मेरा नहीं, पूरे परिवार मित्रों का सहयोग निरन्तर मिलता रहा.

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मण थें पारस हरि रे चरण

राग तिलंग

मण थें पारस हरि रे चरण ।। टेक।।

सुभग सीतल कँवल कोमल, जगत ज्वाला हरण।

जिण चरण प्रहलाद परस्याँ, इन्द्र पदवी धरण।

जिण चरण ध्रुव अटल करस्याँ, सरण असरण सरण।

जिण चरण ब्रह्माण्ड भेट्याँ, नखसिखाँ सिरी धरण।

जिण चरण कालियाँ नाथ्याँ, गोप लीला करण।

जिण चरण गोबरधन धारयाँ गरब मघवा हरण।

दासि मीराँ लाल गिरधर, अगम तारण तरण ।। 1 ।।

म्हारो परनाम बाँके बिहारी जी

राग ललित

म्हारो परनाम बाँके बिहारी जी ।। टेक।।

मोर मुगट माथ्याँ तिलक बिराज्याँ, कुण्डल अलकाँ धारी जी।

अधर मधुर धर वंशी बजावाँ, रीझ रिझावाँ, राधा प्यारी जी।

या छब देख्याँ मोह्याँ मीराँ , मोहन गिरवधारी जी ।। 2 ।।

बस्याँ म्हारे णेणणमाँ नंदलाल

राम हमीर

बस्याँ म्हारे णेणणमाँ नंदलाल ।। टेक।।

मोर मुगट मकराक्रत कुण्डल अरुण तिलक सोहाँ भाल।

मोहन मूरत साँवराँ सूरत णेणा बण्या विशाल।

अधर सुधा रास मुरली राजाँ उर बैजन्ती माल।

मीराँ प्रभु संताँ सुखदायाँ भगत बछल गोपाल ।। 3 ।।

हरि म्हारा जीवण प्राण आधार

हरि म्हारा जीवण प्राण आधार ।। टेक।।

और आसिरो णा म्हारा थें विण, तीनूँ लोक मँझार।

थें विण म्हाणे जग णा सुहावाँ, निरख्याँ सब संसार।

मीराँ रे प्रभु दासी रावली, लीज्यो णेक णिहार। ।। 4 ।।

तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर

तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर ।। टेक।।

हम चितवाँ थें चितवो णा हरि, हिवड़ों बड़ो कठोर।

म्हारी आसा चितवणि थारी, ओर णा दूजा दोर।

उभ्याँ ठाढ़ी अरज करूँ छूँ करताँ करताँ भोर।

मीराँ रे प्रभु हरि अविनासी देस्यूँ प्राण अकोर ।। 5 ।।

म्हारो गोकुल रो ब्रजवासी

शब्द

म्हारो गोकुल रो ब्रजवासी ।। टेक।।

ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ, ब्रजवणताँ सुखरासी।

णाच्याँ गावाँ ताल बजावाँ, पावाँ आणंद हाँसी।

णन्द जसोदा पुत्र री, प्रगटयाँ प्रभु अविनासी।

पीताम्बर कट उर बैजणता, कर सोहाँ री बाँसी।

मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, दरसण दीज्यो दासी ।।  6 ।।

हे मा बड़ी बड़ी अँखियन वारो, साँवरौ मो तन हैरत हँसिके

हे मा बड़ी बड़ी अँखियन वारो, साँवरौ मो तन हैरत हँसिके ।। टेक।।

भौंह कमान बाण बाँके लोचन, मारत हियरे कसिके।

जतन करो जन्तर लिखि बाँधो, ओखद लाऊँ घसिके।

ज्यों तोकों कुछ और बिथा हो, नाहिन मेरो बसिके।

कौन जतन करों मोरी आली, चन्दन लाऊँ घसिके।

जन्तर मन्तर जादू टोना, माधुरी मूरति बसिके।

साँवरो सूरत आन मिलावो ठाढ़ी रहूँ मैं हँसिके।

रेजा रेजा भयो करेजा अन्दर देखो घँसिके।

मीराँ तो गिरधर बिन देखे, कैसे रहे घर बसिके। ।। 7 ।।

हेरी मा नन्द को गुमानी म्हाँरे मनड़े बस्यो

हेरी मा नन्द को गुमानी म्हाँरे मनड़े बस्यो ।। टेक।।

गहे द्रुम डार कदम की ठाड़ो मृदु मुसकाय म्हारी ओर हँस्यौ।

पीताम्बर कट काछनी काछे, रतन जटित माथे मुगट कस्यो।

मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, निरख बदन म्हारो मनड़ो फँस्यो ।। 8 ।।

थारो रूप देख्याँ अटकी

थारो रूप देख्याँ अटकी ।। टेक।।

कुल कुटुम्ब सजण सकल बार बार हटकी।

विसरयाणा लगण लगाँ मोर मुगट नटकी

म्हारो मण मगण स्याम लोक कह्याँ भटकी।

मीराँ प्रभु सरण गह्याँ जाण्या घट घट की ।। 9 ।।

म्हारे णेणा निपट बंकट छब अटके

रूप राग

राम त्रिवेनी

निपट बंकट छब अटके।

म्हारे णेणा निपट बंकट छब अटके ।। टेक।।

देख्याँ रूप मदन मोहन री, पियत पियूखन मटके।

बारिज भवाँ अलग मतवारी, णेण रूप रस अटके।

टेढ्या कट टेढ़े कर मुरली, टेढ्या पाय लर लटके।

मीराँ प्रभु रे रूप लुभाणी, गिरधर नागर नटके ।। 10 ।।

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