मीराँ शोध संस्थान-मेड़ता

मीराँ शोध संस्थान अगस्त 1965 में नागौर से स्थानान्तरित होकर मेड़ता, जोधपुर में स्थापित हुआ था। मीराँ की पावन धरा पर कदम रखते ही अनायास अद्वितीय ऊर्जा के साथ कार्य शुरू होने लगा। उसी समय श्री चारभुजानाथ एवं मीराँबाई मन्दिर में ‘मीराँ महोत्सव’ की धूम थी। इस मन्दिर के साथ वर्तमान में ‘मीराँबाई स्मारक’ स्थित है, पूर्व में विद्यालय था। विधिवत् रूप से मीरा शोध संस्थान 10 सितम्बर 1968 में लघु स्तर पर गठित किया।

कार्यकर्ताओं के उत्साहित होकर अपने सभी साथियों के सहयोग से विधिवत् चुनाव द्वारा मजबूत कार्यकारिणी का गठन किया। कुछ दिनों के बाद मेड़ता के लोकप्रिय वकील, सामाजिक कार्यकत्र्ता तथा श्री चारभुजानाथ एवं मीराँबाई मन्दिर कमेटी के ट्रस्टी स्व. भँवरलाल जी दिवाकर ने कार्यालय हेतु श्री चारभुजा धर्मशाला में निःशुल्क कमरा लिया।

कुछ समय बाद ही मीराँ शोध संस्थान का रजिस्ट्रेशन करवा लिया गया। संस्थान का स्थायी भवन बनाने के उद्देश्य से उपखण्ड अधिकारी कार्यालय, तहसील, नगरपालिका एवं यहाँ के प्रतिष्ठित व्यक्तियों से अनेक बार सम्पर्क किया।

मीराँ शोध संस्थान समय पर गोष्ठियों, प्रतियोगिताओं, व्याख्यान मालाओं का कार्यक्रम यथा समय करता रहा।

गतिविधियाँ

  1. 22 अगस्त 1991 को सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. जगदीशसिंह गहलोत द्वारा मीराँ शोध संस्थान में ‘‘मीराँ व्याख्यान माला’’ का आयोजन किया गया। इसी अवसर पर संस्थान की ओर से उनका सम्मान भी किया गया।
  2. राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के आर्थिक सहयोग से मीराँ जयन्ती का उत्सव 06 अगस्त, 1995 को रखा गया। इस अवसर पर मीराँ जीवनवृत्त, भजन काव्य गोष्ठी, पुस्तक व चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया।
  3. 20 अगस्त, 1999 को राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी के सौजन्य से आयोजित मीराँ महोत्सव का भव्य आयोजन किया। इस अवसर पर आमंत्रित विद्वानों द्वारा पढ़े गए एवं अन्य प्राप्त आलेखों के आधार पर मीरा शोध संस्थान की ओर से ‘‘मीराँ-स्मारिका’’ का प्रकाशन जुलाई 2000 में किया गया। जिसका विमोचन इसी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष श्री गोपाल प्रसाद मुद्रगल द्वारा 10 नवम्बर, 2000 को मेड़ता रोड में नव साक्षर साहित्य सृजन कार्यशाला के अन्तर्गत किया गया।
  4. 07 दिसम्बर, 1997 रविवार को डी.आर.डी.ए. हाल (हाई कोर्ट जोधपुर) में ‘मीराँ शोध संस्थान मेड़ता’ एवं ‘भारतीय विद्या भवन केन्द्र जोधपुर’ के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम रखा गया। इस अवसर पर, डा. महावीरसिंह गहलोत व प्रोफेसर सुशीला लड्ढ़ा द्वारा लिखित मीराँ पदावली और Songs of Meera पुस्तकों के विमोचन के तत्पश्चात् मीराँ संगीत समारोह का आयोजन भी किया।

मीराँ शोध संस्थान में प्रतिवर्ष मीराँ महोत्सव के शुभावसर पर स्थानीय विद्यालयों में विद्वानों द्वारा व्याख्यानों का आयोजन किया जाता रहा है। इसके अलावा कभी निबन्ध प्रतियोगिता, कभी मीराँ काव्य पाठ, तो कभी चित्राकला प्रतियोगिता आदि का आयोजन कर प्रोत्साहन हेतु छात्रा-छात्राओं को पुरस्कृत किया जाता है। इस प्रकार कार्य करते-करते 30 अप्रैल 1997 को दीपचंद सुधार जी सेवानिवृत्त हो गए।

सन्त का आशीर्वाद

‘मीराँबाई स्मारक’ के साथ-साथ ‘मीराँ शोध संस्थान’ का प्रचार-प्रसार दर्शकों व श्रद्धालुओं के द्वारा दिनांेदिन बढ़ता गया। भीतर के कार्यकलाप व मीराँ साहित्य सामने आने लगा। गुजरात में आयोजित समारोह हेतु ‘मीराँ शोध संस्थान’ को भी मौखिक समाचार यथा समय मिलते रहे।

भावी योजनाएँ

  1. शोध हेतु विश्वविद्यालय से मान्यतया दिलाने हेतु प्रयास करना।
  2. मीराँ सम्बन्धी नवीनतम शोध करना।
  3. शिलालेखों, खण्डहरों व खुदाई से प्राप्त होने वाली सामग्री के आधार पर नये तथ्यों को उजागर करना तथा पुस्तक प्रकाशित करना ताकि इतिहास प्रेमी लाभाविन्वत हो सकें।

मीराँ शोध संस्थान में सर्वप्रथम श्रीमती सुशीला राखेचा ने प्लास्टिक की दस कुर्सियाँ, श्री सुन्दरलाल पुरोहित ने स्टील व डनलप की घूमने वाली बड़ी कुर्सी तथा दो छोटी कुर्सियाँ, श्री छोटराज वौराणा ने लेक्चर स्टैण्ड व नवलकिशोर पुरोहित (जोधपुर) ने अपने पुजनीय पिताजी स्व. श्री मेघराज पुरोहित की स्मृति में चार लोहे की बड़ी अलमारियाँ सहर्ष भेंट कर संस्थान के प्रति अटूट आरथा को व्यक्त करने हुए प्रेरणा का पथ-प्रदर्शन किया है।

आज देश-विदेश के बड़े-बड़े साहित्यकार, चित्रकार, संगीतकार मीराँ प्रेम में होने के कारण जीवन में एक बार मीराँ शोध संस्थान जाते जरूर हैं। साथ ही विभिन्न रचनाकार जो अपनी पुस्तकें स्वयं जाकर नहीं दे सकते वह, पोस्ट कर देते हैं। कुल मिलाकर मीराँ शोध संस्थान की शुरुआत दीपचंद सुधार जी के अथक प्रयासों से ही प्रसांगिक बना रहा है। दीपचन्द्र सुधार 89 वर्ष के हो जाने के बावजूद उनकी मीराँ के प्रति भक्ति प्रेम, आदर कम नहीं हुआ। आज भी मेड़ता स्थित चारभुजानाथ के मंदिर के दर्शन होने के बाद सभी मीराँ शोध संस्थान में जानकारियाँ लेने जरूर जाते हैं। मीराँ शोध संस्थान में आज छः से सात हजार पुस्तकें, 20-25 पीएच.डी. शोध पत्र, एम.फिल आदि को भली-भांति देखा जा सकता है। मीराँ सम्बन्धी अधिक से अधिक महत्वपूर्ण सामग्री मीराँ शोध संस्थान में संग्रहित की गई है।