‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’, राजस्थान सरकार द्वारा स्थापित वह संस्थान है जो राजस्थानी संस्कृति एवं विरासत को संरक्षित रखने एवं उसकी उन्नति करने के उद्देश्य से स्थापित किया है। इसकी स्थापना मुनि जिनविजय के मार्गदर्शन में की गई थी। मुनि जिनविजय राॅयल एशियाटिक सोसायटी के सदस्य थे। भारत के राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने इसकी आधारशिला रखी थी। इसका मुख्यालय जोधपुर में है।
प्राचीन भाषा और लिपि में लिखे गए विभिन्न अप्रकाशित पांडुलिपियों और प्राचीन ग्रंथों की खोज और उनके प्रकाशन के लिए उत्तरदायी राजस्थान शासन द्वारा जोधपुर में सन् 1950 में एक पंजीकृत स्वायत्तशासी समिति है।
‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ इतिहास को संजो कर रखने वाली वह महत्त्वपूर्ण संस्थान एवं संग्रहालय है, जिसमें प्राचीन भाषाओं-संस्कृत, प्राकृत, डिगंल, पिगंल, अपभ्रंश, राजस्थानी तथा हिन्दी आदि भाषाओं के महत्त्वपूर्ण कवि रचनाकारों द्वारा हस्तलिखित अनेक प्रकार की सामग्री लिखित रूप में और चित्रित रूप में सुरक्षित विद्यमान हैं।
राजस्थान के महत्त्वपूर्ण स्थानों जैसे जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, कोटा, झालावाड़ आदि शहरों में इस प्रकार पौथीखानों अर्थात् संग्रहालय की स्थापना हुई। इस संग्रहालयों में इतिहास से प्राप्त हुए राष्ट्र की धरोहर को सुरक्षित तथा संग्रहित रखने का कार्य बड़ी ही सावधानी से किया जाता है। 500 साल पहले मिले हमारे देश के वो रचनाकार जिनको हस्तलिखित पदों को, चित्रों को, संरक्षित कर आज वर्तमान में हमारे समक्ष प्रस्तुत करने का बहुमूल्य कार्य इस संग्रहालय संस्था में किया जाता है।
राजस्थान के साहित्य को अमर बनाए रखने का कार्य इस प्रतिष्ठान में विश्वसनीयता से जारी है। इसी प्रतिष्ठान में मीरा द्वारा लिखित पांडुलिपि भी विद्यमान है जिसको प्राप्त भी किया जा सकता है। एक रसीद जिसका शुल्क रखा गया है तथा एक सी.डी. जिसमें उस पांडुलिपि को कम्प्यूटर द्वारा सेव करके शोधार्थी को दिया जाता है।
‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ जोधपुर मुख्यालय में आर्ट गैलरी एक बड़ा हाॅल भी विद्यमान है जिसमें अमूल्य साहित्यिक धरोहरों को प्रदर्शित किया जाता है। ‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ एक बहुत बड़ा संग्रहालय है जिसमें सभी धर्म, जाति, भाषा के द्वारा प्राप्त इतिहास को बड़ी ही सुन्दरता से शीशे के बन्द बाक्सों में सजाकर बड़े सलीके से हाॅल में रखा गया है। शीशे के बाक्स पर उस चित्र और हस्तलिखित पांडुलिपि के विषय में भी एक पट्टी के द्वारा समझाया गया है। किस समय, किस जगह तथा किस विषय से शीशे में रखी पांडुलिपि के सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर सूचना दी गई है। इस संग्रहालय में कागज पर ही लिखी पांडुलिपियां ही नहीं अपितु भोजपत्र, ताड़पत्र, चर्मपत्र, कपड़ा, ताम्रपत्र, शिलालेख आदि पर भी बने चित्र और लेखों को संरक्षित किया गया है। इन सभी को देखने पर मानो उस प्राचीनकाल का चित्र मन में उभरने लगता है। यह सब आज के समय में हमारे लिए बहुमूल्य तथा अनमोल खजाना है, जिसे किसी भी प्रकार खर्च या नष्ट नहीं किया जा सकता।
‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ ने भारतीय संस्कृति और साहित्यिक इतिहास को एक जगह एक संस्था द्वारा एकत्र करके बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। शोधार्थियों के अध्ययन के लिए इस पुस्तकालय में 30 हजार से अधिक मुद्रित पुस्तकें उपलब्ध हैं।
1958 में राजस्थान सरकार ने‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ को मुख्यालय जयपुर से जोधपुर में परिवर्तित किया गया जहाँ पर एक सरकारी आॅफिसर की निगरानी में इन पांडुलिपियों की देख-रेख का कार्य किया जाता है।
‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ ने सभी भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों, लेखों को एकत्र करके उन्हें संरक्षित करने का कार्य किया है। इसके साथ ही प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों का सम्पादन एवं प्रकाशन का कार्य भी किया जिससे शोधकर्ता एवं विद्वानों को अध्ययन और शोध करने में सहायता मिलती रहे।
राजस्थान के परम्परागत और लोकजीवन से जुड़े विविध लोकगीत, भक्ति-साहित्य सामग्री तथा अन्य दुर्लभ ग्रंथों का संग्रहण करने के लिए एक विशाल पुस्तकालय भी बनाया हुआ है। जहाँ पर पुस्तकों को बैठ कर पढ़ा जा सकता है तथा उनकी फोटोकाॅपी कराने और अध्ययन के लिए सभी जरूरी चीजें पुस्तकालय में उपलब्ध हैं।
पांडुलिपि संग्रह अनुभाग में जोधपुर मुख्यालय में 42 हजार हस्तलिखित ग्रंथ विद्यमान हैं। सौ से ज्यादा ग्रंथ चित्र उपलब्ध हैं जिसमें राजस्थान ही नहीं अपितु जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी भारतीय शैली, कंगडा आदि में चित्रित शैलियां भी विद्यमान हैं।
बौद्धिक धार्मिक धर्म, काव्यशास्त्र विषयक ग्रंथ, जैन चित्रित ग्रंथ, मेवाड़ लघुचित्रित पांडुलिपियाँ तथा गीत गोविन्द की चित्र सहित प्रतियाँ भी इस संस्था में संग्रहित और सुरक्षित हैं।
‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ, लघु चित्रित ग्रंथों की प्रदर्शनी तथा व्याख्यनामालाओं का आयोजन करता है जिसमें भक्ति-साहित्य, नाथ-साहित्य, संत-साहित्य आदि राजस्थान की ऐतिहासिक पुस्तकों, चित्रों, ग्रंथों की प्रदर्शनी करता है। समय-समय पर कार्यशालाओं तथा संगोष्ठियों का भी आयोजन करता रहता है।
प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों, लेखों, चित्रों को संरक्षण करने के लिए कन्जर्वेशन लेबोरेट्री उपलब्ध है। फटे-पुराने पत्रों, पांडुलिपियों की मरम्मत तथा उपचार करके उन्हें संरक्षण किया जाता है।
इस प्रकार ‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ जोधपुर स्थित एक महत्त्वपूर्ण संस्था है जिसका उद्देश्य इतिहास को सुरक्षित तथा संरक्षित करना है।