राग मुल्तानी
असा प्रभु जाण न दीजै हो।।टेक।।
तण मण धन करि वारणै, हिरदे धरि लीजै हो।
आव सखी मुख देखिये, नैणाँ रस पीजै हो।
जिह जिह बिधि रीझे हरी, सोई विधि कीजै हो।
सुन्दर स्याम सुहावणा, मुख देख्याँ जीजै हो।
मीराँ के प्रभु रामजी, बड़ भागण रीझै हो।।14।।