आज म्हाँरो साधु जन नी सँगरे, राणा म्हाँरा भाग भल्या।।टेक।।
साधू जन नी संग जो करिये, चढ़ेते चैगणी रंग रे।
साकत जन नी संग न करिये, पड़े भजन में भंग रे।
अड़सठ तीरथ संतों ने चरणे, कोटि कासी कोटि गंग रे।
निन्दा करसे नरक कुंड माँ, जासे थासे आँधरा अपंग रे।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, संतो नी रज म्हाँ रे अंग रे।।56।।