थारो रूप देख्याँ अटकी

थारो रूप देख्याँ अटकी ।। टेक।।

कुल कुटुम्ब सजण सकल बार बार हटकी।

विसरयाणा लगण लगाँ मोर मुगट नटकी

म्हारो मण मगण स्याम लोक कह्याँ भटकी।

मीराँ प्रभु सरण गह्याँ जाण्या घट घट की ।। 9 ।।