उपालम्भ
राग सुख सोरठ
देखाँ माई हरि मण काठ कियाँ।।टेक।।
आवण कह गयाँ अजा ण आयाँ, कर म्हाणे कोल गयाँ।
खाण पाण सुध बुध सब बिसर्याँ, काँई म्हारो प्राण जियाँ।
थारो कोल बिरुद जग थारो, थे काँई बिसर गयाँ।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, थे बिण फटा हियाँ।।42।।