राग गुनकली
मैं तो गिरधर के घर जाऊँ।।टेक।।
गिरधर म्याँरो साँचो प्रीतम, देखत रूप लुभाऊँ।
रैण पड़ै तब ही उठि जाऊँ, भोर भये उठि आऊँ।
रेण दिना वाके सँग खेलूँ, ज्यूँ त्यूँ वाहि लुभाऊँ।
जो पहिरावै सोई पहिरूँ, जो दे सोई खाऊँ।
मेरी उणकी प्रीत पुराणी, उण विण पल न रहाऊँ।
जहँ बैठावे तितही बैठूँ, बेचे तो बिक जाऊँ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, बार बार बलि जाऊँ।।18।।