यो तो रंग धत्ताँ लग्यो ए माय

यो तो रंग धत्ताँ लग्यो ए माय।।टेक।।

पिया पियाला अमर रस का, चढ़ गई घूम घुमाय।

यो तो अमल म्हाँरो कबहूँ न उतरे, कोट करी उपाय।

साँप पिटारो राणाजी भेज्यो, द्यौ मेड़तणी गल डार।

हँस हँस मीराँ कंठ लगायो, यो तो म्हाँरे नौसर हार।

विष को प्यालो राणो जी भेज्यो, द्यो मेड़तणी णे पाय।

कर चरणामृत पी गई रे, गुण गोविन्द रा गाय।

पिया पियाला नाम का रे, और न रंग सोहाय।

मीराँ कहै प्रभु गिरधर नागर, काचो रंग उड़ जाय।।60।।