राणाजी थे क्याँने राखो म्हाँसूँ बैर

राग अगना

राणाजी थे क्याँने राखो म्हाँसूँ बैर।।टेक।।

थें तो राणाजी म्हाँने इसड़ा, लागो ज्यों ब्रच्छन में कैर।

महल अटारी हम सब त्यागे, त्याग्यो थारो बसनो सहर।

कागज टीकी राणा हम सब त्याग्या भगवीं चादर पहर।

मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, इमरित कर दियो जहर।।27।।