संत ज्ञानेश्वर एवं मीराबाई की मधुरा भक्ति

लेखक : डाॅ. दीपा क्षीरसागर

अनुवादक : डाॅ. हणमतराव पाटील, डाॅ. सुधाकर शेंडगे

प्रकाशक : विद्या प्रकाशन

संस्करण : प्रथम 2006

दीपा क्षीरसागर ने तुलनात्मक साहित्य को आधार बनाकर मराठी में अपनी शोध कृति ‘‘संत ज्ञानेश्वर एवं संत मीराबाई के मधुरा भक्ति परक काव्य’’ का अनुसंधान किया है। एक अनुवादित पुस्तक में मध्ययुगीन भारतीय कृष्ण-परंपरा के दो सर्वश्रेष्ठ संत कवि, तेरहवीं सदी के ज्ञानेश्वर एवं पन्द्रहवीं सदी के मीराबाई के मधुर भक्ति के पदों का अनुसंधानात्मक अध्ययन प्रस्तुत है। भारतीय भक्ति परंपरा में मधुरा भक्ति की संकल्पना, स्वरूप एवं विशेषताएं इस पुस्तक में भारतीय तत्वज्ञान एवं उससे संबंधित साहित्य में द्वैतवाद एवं अद्वैतवाद की दो धाराएं स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। ज्ञानेश्वर का संघर्ष लोगोन्मुखता में परिवर्तित होता है। इसके विपरीत मीराबाई के संघर्ष का स्वरूप है-उनकी बगावत। मध्यकालीन नारियों की व्यथाओं को मीराबाई ने व्यक्त किया है।

सारांश संत ज्ञानेश्वर की कविता मध्ययुगीन मराठी काव्य की एक श्रेष्ठ भक्ति-कविता है तो मीराबाई की कविता मध्ययुगीन उत्तर भारत की श्रेष्ठ प्रेमभक्ति कविता है। श्रेष्ठता के कुछ तथ्य ज्ञानेश्वर के तो कुछ मीराबाई के मधुरा भक्ति काव्य में प्रकट होते हैं। इस दोनों के विरोध की अपेक्षा साम्य स्थल ही अधिक है जो ध्यान देने योग्य हैं। इन दोनों के मधुरा भक्ति काव्य के माध्यम के भारतीय मधुरा भक्ति भाव एवं काव्य अत्युचत स्तर पर पहुंचा है।