अखयाँ तरशाँ दरसण प्यासी January 30, 2019February 16, 2019 meera_admin Views : अखयाँ तरशाँ दरसण प्यासी। मग जोवाँ दिण बीताँ सजणी, णैण पड्या दुखरासी। डरा बैठ्याँ कोयल बोल्या, बोल सुण्या री गासी। कड़वा बोल लोक जग बोल्या, करस्याँ म्हारी हाँसी। मीराँ हरि रे हाथ विकाणी, जणम जणम री दासी।।35।।