आली री म्हारे णेणाँ बाण पड़ी

राग कामोद

आली री म्हारे णेणाँ बाण पड़ी।।टेक।।

चित्त चढ़ी म्हारे माधुरी मूरत, हिबड़ा अणी गड़ी।

कब री ठाड़ी पंथ निहाराँ, अपने भवण खड़ी।

अटक्याँ1 प्राण साँवरो प्यारो2, जीवन मूर जड़ी।

मीराँ गिरिधर हाथ बिकाणी, लोग कह्याँ बिगड़ी।।13।।