जाण्याँ णा प्रभु मिलण विध क्याँ होय

वियोग

राग लोहानी

जाण्याँ णा प्रभु मिलण विध क्याँ होय।।टेक।।

आया म्हारे आँगणाँ फिर गया मैं जाण्याँ खोय।

जोवताँ मग रैण बीताँ दिवस बीताँ जोय।

हरि पधाराँ आँगणाँ गया मैं अभागण सोय।

विरह व्याकुल अनल अन्तर कल णाँ पड़ता दोय।

दासी मीराँ लाल गिरधर मिल णा बिछड्या कोय।।33।।