जोगियाजी निसदिन जोवाँ थारी बाट।।टेक।।
पाँव न चालै पंाि दुहेलो, आढा औघट घाट।
नगर आइ जोगी रम गया रे, मो मन प्रीति न पा।
मैं भोली भोलापन कीन्हों राख्यौ नहिं बिलमाइ।
जोगिया कूँ जोवत बोहो दिन बीता, अजहूँ आयो नाहिं।।
विरह बुझावण अन्तरि आवो, तपन लगी तन माहिं।
कै तो जोगि जग माँ नाहीं कैर बिसारी मोइ।
काँइ करूँ कित जाऊँरी सजनी नेण गुमायों रोइ।
आरति तेरी अन्तरि मेरे, आलो अपनी जाणि।
मीराँ व्याकुल बिरहिणी रे, तुम बिनि तलफत प्राणि।।34।।