थें मत बिरजाँ माइड़ी, साधाँ दरसण जावाँ।
स्याम रूप हिरदाँ बसाँ, म्हारे ओर णा भावाँ।
सब सोवाँ सुख नींदड़ी, म्हारे नैण जगावाँ।
ग्याण नसाँ जग बावरा ज्याकूँ, जाकूँ स्याम णा भावाँ।
मा हिरदाँ बस्याँ साँवरो म्हारे णींद न आवाँ।
चैमास्याँ री बावड़ी, जया कूँ नीर न पीवाँ।
हरि निर्झर अमरित झर्या, म्हारे प्यास बुझावाँ।
रूप सुरंगा साँवरी, मुख निरखण जावाँ।
मीराँ व्याकुल विरहिणी अपणी कर ल्यावाँ।।55।।