रमईया मेरे तोही

रमईया मेरे तोही, सूँ लायी नेह।

लगी प्रीत जिन तोड़ै रे बाला, अधिक कीजै नेह।।टेक।।

जो हूँ ऐसी जानती रे बाला, प्रीत कीयाँ दुष होय।

नगर ढंढोरी फेरती रे, प्रीत करो मत कोय।

षीर न षाजे आरी रे, मूरष न कीजै मित।

षिण ताता षिण सीतला रे, षिण वैरी षिण मित।

प्रीत करें ते बावरा रे, करि तोड़ै ते कूर।

प्रीत निभावण दलके षंभण, ते कोई बिरला सूर।

तुम गजगौरी को चूँतरो रे, हम बालू की भीत।

अब तो म्याँ कैसे वणै रे, पूरब जनम की प्रीत।

वाकौ रस नीकौ लगै रे, वाको लागै सूल।

ज्यूँ डूगर का बाहला रे, यूँ ओछा तणा सनेह।

बहता वहैजो उतावला रे, वे तो अंटक बतावे छेह।

आयो सावन भादवा रे, बोलण लगा मोर।

मीराँ कूँ हरिजन मिल्या रे, ले गया पवन झकोर।।49।।