साँवरो नन्द नँदन, दीठ पड्îाँ माई।
डारîयाँ सब लोकलाज सुध बुध बिसराई।
मोर चन्द्रिका किरीट मुगट छब सोहाई।
केसर री तिलक भाल, लोणण सुखदाई।
कुण्डल झलकाँ कपोल अलकाँ लहराई।
मीणा तज सरवर ज्यों मकर मिलण धाई।
नटवर प्रभु भेष धर्याँ रूप जग लोभाई।
गिरधर प्रभु अंग-अंग मीराँ बलि जाई।।51।।