हेरी मा नन्द को गुमानी म्हाँरे मनड़े बस्यो

हेरी मा नन्द को गुमानी म्हाँरे मनड़े बस्यो ।। टेक।।

गहे द्रुम डार कदम की ठाड़ो मृदु मुसकाय म्हारी ओर हँस्यौ।

पीताम्बर कट काछनी काछे, रतन जटित माथे मुगट कस्यो।

मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, निरख बदन म्हारो मनड़ो फँस्यो ।। 8 ।।