पीतांबरा

पुस्तक : पीतांबरा
सम्पादक : डॉ. भगवतीशरण मिश्र
प्रकाशक : राजपाल
संस्करण : 2010

मीरा के समस्त पद ही आज तक साहित्य में चर्चित रहे हैं किन्तु इन पदों के पीछे छुपे इतिहास को उपन्यास रूप में प्रस्तुत करना डॉ. भगवतीशरण मिश्र ने अपनी लेखनी से बखूबी किया है। डॉ. भगवती मिश्र ने पीतांबरा जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए मीरा से संबंधित सभी स्थानों की यात्रा की। लोगों से बातचीत की, शोध-संस्थानों से सम्पर्क स्थापित किया, तब जाकर मीरा का संक्षिप्त इतिवृत-निष्कर्ष पर पहुंचे।

* मीरा का जन्म मेड़ता नहीं बल्कि मीरा का जन्म कुड़की में हुआ। स्वयं कुड़की यात्रा की जो मीरा का वह पितृ-गृह जहाँ मीरा ने जन्म लिया था।

* मीरा के गुरु को लेकर भी प्रयास किया, जो लोग मीरा के गुरु रैदास को बताते हैं भगवतीशरण मिश्र जी इसे मान्यता नहीं देते जिसने श्री कृष्ण को ही सर्वस्व मान लिया उसे किस गुरु की आवश्यकता? कृष्ण तो स्वयं जगतगुरु हैं-कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।

* मीरा से संबंधित इसी प्रकार कई लोगों द्वारा प्रचारित अकबर और मीरा की भेंट को भी नकार दिया है।

पीताबंरा उपन्यास की पूर्ति करते हुए आगे जो कुछ लिखा गया है वह भी इतिहास ही है, अतः पूरी पुस्तक उपन्यास होते हुए भी एक तरह से मीरा की जीवनी भी है।

प्रस्तुत पीतांबरा में एक से लेकर एक सौ इक्यावन तक मीरा जीवन की संपूर्ण गाथा को वर्णित करते हुए अंश हैं।

युद्ध जो राव दूदा नहीं चाहते थे इस प्रकार से उपन्यास की शुरुआत जो नहीं चाहते थे इस श्रेष्ठ आर्य भूमि पर रक्त-पिपासा ग्रस्त धरती हो, से उपन्यास का आरंभ दिखाया गया है।

मीरा जीवन का सम्पूर्ण वर्णन करते हुए जीवन के अन्तिम पड़ाव तक की यात्रा बहुत ही छोटे और अकृष्ट संवादों के द्वारा पीतांबरा में प्रस्तुत है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार से सम्मानित इस उपन्यास में लेखक के अनुसार मीरा मात्र श्री कृष्णोपासिका नहीं थी अपितु वह एक निर्भीक समाज सुधारिका भी थी जिसने आज से प्रायः पांच सौ वर्ष पूर्व ही नारी-जागरण का प्रथम शंख-नाद किया था।

इस ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति में मीरा संबन्धी विविध भ्रांतियों को सफलतापूर्वक निरस्त कर तथा उसके जीवन से जुड़े चमत्कारों को विश्वसनीय रूप में रखने का प्रयास कर लेखक ने मीरा के व्यक्तित्व और कृतित्व को आधुनिक पाठकों के अत्यधिक समीप लाने का स्तुत्य प्रयास किया है।