संपादक- अरविंद सिंह तेजावत
संस्करण -2015
मूल्य -350 ₹
अरविंद सिंह तेजावत जी ने मीरा पर शोध करके इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। प्रस्तुत पुस्तक के (अध्याय एक: मीरा का जीवन एवं संघर्ष )में मीरा के जन्म स्थान मेड़ता का वर्णन किया है। मीरा के जीवन से संबंधित स्रोत सामग्री नाभादास एवं अन्य भक्त कवियों के भक्तमाल, वल्लभ संप्रदाय के वैष्णव भक्तों का वार्ता साहित्य ,मध्यकालीन मेवाड़ और मारवाड़ में लिखे गए ख्याल ग्रंथ, नगरीदास का नागर समुच्चय एवं सुखसारण द्वारा रचित मीराबाई की परची,किदवंतीयां प्रचलित परंपराएं एवं रीति रिवाज पुरातात्विक स्रोत सामग्री ,मीरा के नाम पर प्रचलित पद एवं पांडुलिपिया तथा फुटकर उल्लेख एवं जीवन चरित्र से मीरा का जीवन परिचय और संघर्ष का वर्णन किया है।(अध्याय दो : पुरातात्विक स्रोत सामग्री) के माध्यम से मीरा के समय के मेड़ता राव दूदा महल , चारभुजा मंदिर,महलों,चितौड़गढ़ के किले, गुजरात का प्रसिद्ध द्वारिका मंदिर आदि का उल्लेख विस्तार से किया है।साथ ही उस समय के स्तंभ दुर्ग, दीवारों, भारतीय मूर्तिकला शिल्प, आकृतियों आदि का सुंदर चित्रण किया है।(अध्याय तीन: साहित्यिक स्रोत सामग्री) मीरा के जीवन के बारे में जानकारी देने वाली हस्तलिखित स्रोत सामग्री का गंभीर अभाव है किंतु मीरा के नाम से प्रचलित पद उत्तर- दक्षिण -पूर्व- पश्चिम अर्थात भारत के प्रत्येक कोने में मिल जाएंगे केवल उनकी भाषा एवं विषय वस्तु बदल जाएगी। मीरा की साहित्यिक स्रोत सामग्री विभिन्न राजस्थान के पुस्तकालयों में यदा-कदा मिल जाती हैं तथा कुछ प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों ,भक्तमाल आदि से ही उनके पदों का वर्णन होता है। (अध्याय चार: किवदंतियां परंपराएं एवं रीति रिवाज) मीरा के संपूर्ण जीवन में किवदंतियों जैसे मीरा को विष का प्याला पी जाना, पिटारे में सांप भेजना उसका फूलों का हार बन जाना , मीरा का द्वारिका में कृष्ण की मूर्ति में समा जाना आदि ।(अध्याय पाँच: ऐतिहासिक विवरण एवं आलोचनात्मक ग्रंथ) क्रांतिधर्मिता, परंपरा- विरोध सामंत- विरोध, प्रतिरोध की क्षमता एवं चमत्कारिक व्यक्तित्व के बावजूद हिंदी आलोचना एवं इतिहासकारों ने मीरा की लगातार उपेक्षा की है। राजपूताने तथा देश के मध्यकाल से संबंधित आरंभिक इतिहास- ग्रंथों पर नजर डाले तो प्रायः अधिकांश इतिहास -ग्रंथ मीरा के संदर्भ में मौन नजर आते हैं। मीरा पर वर्तमान समय में जितने भी आलोचना ग्रंथ उपलब्ध हैं उनमें से कोई भी ग्रंथ मीरा की पूर्ण एवं विस्तृत आलोचना प्रस्तुत नहीं करता ,निःसंदेह मीरा पर और अधिक व्यवस्थित अध्ययन की जरूरत है।