राणोजी थें जहर दियो म्हें जाणी

राणोजी थें जहर दियो म्हें जाणी।। टेक।।

जैसे कंचन दहत अगिन में, निकसत बाराँवाणी।

लोकलाज कुल काण जगत की, दइ बहाय जस पाणी।

अपने घर का परदा करलें, मैं अबला बौराणी।

तरकस तीर लग्यो मेरे हियरे, गरक गयो सनकाणी।

सब संतन पर तन मन वारों, चरण कँवल लपटाणी।

मीराँ को प्रभु राखि लई है, दासी अपणी जाणी।।59।।