संपादक: महेंद्र सिंह महलान
प्रकाशक: अयन प्रकाशन
संस्करण: पहला 2015
मीरा के गुरु के संदर्भ में तुलसीदास, विट्ठलदास, जीव गोस्वामी, गजाधर व्यास, चंपा जी, सूरदास, परशुराम देवाचार्य व रैदास आदि के नाम लिए जाते हैं। डॉ.सी. एल.प्रभात नहीं तो यह भी कहा है कि मीरा ने ना तो किसी संप्रदाय से नाता जोड़ा और ना ही किसी संप्रदाय में दीक्षित हुई, ना ही किसी को अपना गुरु बनाया प्रस्तुत पुस्तक में बताया गया है कि साहित्यकार श्री कमलेश्वर अपने जीवन काल में तिजारा आते रहे हैं, वे यहां पर मंदिर श्री बांके बिहारी जी के पीठाचार्य श्री ललित मोहन ओझा के पास ठहरा करते थे। मठ में उपलब्ध प्राचीन धार्मिक साहित्य का अध्ययन करके उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में आदि में लेख आदि लिखे थे। दैनिक भास्कर के 21 अक्टूबर 2002 के अंक में उन्होंने लिखा आदि शंकराचार्य की धर्म-दर्शन की अद्वैतवादी परंपरा के उन्नायक शुद्धद्वैतवाद के प्रवर्तक माधवाचार्य की एकमात्र धर्मप्रीठ महाभारत कालीन त्रिगर्त और आज के तिजारा (राजस्थान ) में स्थापित है जहां आकर मीराबाई ने विधिवत धर्म -दीक्षा ली थी।
राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के डॉ. अनिल जैन ने ‘ज्योतिष मंथन’ में मीरा के तिजारा आगमन, प्रेमपीठ में रहकर दीक्षा लेने उनके गुरु मथुरादास व उनसे जुड़े हुए कई प्रसंगों का विस्तृत विवरण दिया है। राजस्थान पत्रिका के पाठक पीठ स्तंभ में 27 अक्टूबर 1994 को प्रकाशित हुआ था इस पत्र के प्रत्युत्तर में प्रेम पीठ तिजारा की पीठाधी श्वर आर्य ललित मोहन ओझा ने 25 दिसंबर 1994 को लिखा कि मीरा ने स्वामी मथुरादास से ग्राम तिजारा में दीक्षा ली थी। मथुरा दास नामक सारस्वत ब्राह्मण भट्टाचार्य जी नारायण के शिष्य हुए ,व सर्वशास्त्रों को जानने वाले तथा महान हरिपरायण थी उन्हीं मथुरा दास की शिक्षा परम भक्त मीराबाई थी जिसका चरित्र प्रसिद्ध भक्तमाल ग्रंथ में प्रकट हुआ है।
विषयक्रम के आधार पर पुस्तक में आदि शंकराचार्य ,श्री माधवाचार्य ,श्री नारायण भट्ट ,मीरा के गुरु: विभिन्न अभिमत, भविष्य पुराण ,स्वामी मथुरादास, मीराबाई का ब्रज पदार्पण, दीक्षा हेतु तिजारा आगमन, दीक्षा उवाच, दीक्षा महोत्सव, द्वारिका-प्रस्थान,महापयाण वर्तमान ख्याति, संदर्भ-सूची से पुस्तक का अंतिम चरण पूर्ण किया है।