संत मीराँबाई और उनकी पदावली

सम्पादक : डाॅ. बलदेव वंशी

प्रकाशक : परमेश्वरी प्रकाशन, प्रीत विहार, दिल्ली

संस्करण : प्रथम 2010

संत कवयित्री मीराँबाई ने इसी हृदय-स्थल, हृदय-मंदिर में अपने इष्ट गोपालकृष्ण की मूरत स्थापित कर बचपन से ही उनकी पूजा-आराधना-अर्चना आरंभ कर दी थी।

मीराँबाई ने स्वयं मुक्त होकर अपने समय और युग की नारी को भी और देश-समाज के मानव एवं मानवता को भी मुक्त किया। मध्ययुग में ही आधुनिक मानव की मुक्ति का बिगुल बजाने वाली स्त्री संत, आधुनिकता के नारी-विमर्श का बीज-वपन करने वाली मीराँ अपने जीवन में तथा मृत्यु में भी मुक्त रही।

भाषा को लेकर भी विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं। मारवाड़ी भाषा के राजस्थान की अन्य भाषा-छवियाँ भी विद्यमान हैं। फिर मीराँ की भाषा में गुजराती, ब्रज और पंजाबी भाषा के प्रयोग भी मिलते हैं। मीराँ अन्य संतों नामदेव, कबीर, रैदास आदि की भाँति मिली-जुली भाषा में अपने भावों को व्यक्त करती है। उसके पदों की संख्या भी अपने तक सुनिश्चित नहीं की जा सकी। खोज एवं शोध अभी तक जारी है।

1. प्रेम-दीवानी मीराँबाई का जीवन

2. आधुनिक संदर्भ में मीराँबाई

3. मीराँ के प्रेम का स्वरूप

4. मीराँ का लोक: लोक की मीराँ

5. मीराँ वाणी: विद्रोही आयाम

6. मीराँ की भक्ति-भावना: अन्य संत स्त्रियों से तुलना

7. मीराँबाई: आज के कुछ और प्रश्न

8. पदावली (शब्दार्थ तथा व्याख्या सहित)

उपयुक्त सभी विषयों को इस पुस्तक में बड़ी सफलता से दर्शाया गया है।