आली सहेल्याँ रत्नी कराँ हे

राग हमीर

आली सहेल्याँ रत्नी कराँ हे, पर घर गवण निवारि।

झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।

झूठा आभूषणा री, साँची पियाजी री पोति।

झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखणी चीर।

साँची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर।

छप्पण भाग बुहाई दे हे, इन भोगनि में दाग।

लूण अलूणों भलो हे, अपणे पियाजी को साग।

देखि विराणै निवाँण कूँ हे, क्यूँ उपजावै खीज।

कालर अबणो ही भलो हे, जामें निपजै चीज।

छैल विराणो लाख के हे, अपणे काज न होइ।

ताके संग सीधारताँ हे, भला न कहसी कोइ।

बर हीणों भलो हे, कोढ़ी कुष्टी कोइ।

जाके संग सीधारताँ हे, भला कहै सब लोइ।

अविनासी सूँ बालवाँ हे, जिनसूँ सीँची प्रीत।

मीराँ कूँ प्रभु मिल्या हे, एही भगति की रीत।।23।।