राग नीलाम्बरी
णेणाँ लोभाँ अटकाँ शक्याँ णा फिर आय।।टेक।।
रूँम-रूँम नखसिख लख्याँ, ललक ललक अकुलाय।
म्याँ ठाढ़ी घर आपणे मोहण निकल्याँ आय।
बदण चन्द परगासताँ, मन्द मन्द मुसकाय।
सकल कुटुम्बाँ बरजताँ बोल्या बोल बनाय।
णेणाँ चंचल अटक णा माण्या; परहथ गयाँ बिकाय।
भलो कह्याँ काँई कह्याँ बुरोरी सब लया सीस चढ़ाय।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर बिणा पल रह्याँ णा जाय।।12।।