राग पटमंजरी
मीराँ लागौ रंग हरी, औरन अँटक परी।।टेक।।
चूडो म्हाँर तिक अरु माला, सील बरत सिंणगारी।
और सिंगार म्हाँरे दाय न आवै, यों गुरु ग्यान हमारी।
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हें तो, गुण गोविन्द का गास्याँ।
जिण मारग म्हाँरा साध पधारै, उण मारग म्हे जास्याँ।
चोरी न करस्याँ जिव न सतास्याँ, कोई करसी म्हाँरो कोई।
गज से उतर के खर नहिं चढ़स्याँ, ये तो बात न होई।।22।।