लेखक : माधव हाड़ा
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
संस्करण : प्रथम 2015
जीवन-मीरां का ज्ञात और प्रचारित जीवन गढ़ा हुआ है। गढ़ने का यह काम शताब्दियों तक निरन्तर कई लोगों ने कई तरह से किया है और यह आज भी जारी है। मीरां के अपने जीवनकाल में ही यह काम शुरू हो गया था। उसके साहस और स्वेच्छाचार के इर्द-गिर्द लोक ने कई कहानियाँ गढ़ डाली थीं। साहित्यिक इतिहासकारों, आलोचकों और बाद में नये प्रचार माध्यमों ने मीरां के स्त्री जीवन की कथा को पूरी तरह प्रेम, रोमांस, भक्ति और रहस्य के आख्यान में बदल दिया। मीरां के जीवन के सम्बन्ध में आधुनिक इतिहास की कसौटी पर खरी उतरनेवाली प्रामाणिक जानकारियाँ बहुत कम मिलती हैं। मीरां के जीवन के सम्बन्ध में सम्बन्ध में ज्ञात और प्रचारित अधिकांश जानकारियों का स्रोत उसकी कविता है।
समाज-आम धारणा यह है कि मीरां का समय और समाज ठंडा और ठहरा हुआ था। मीरां को रहस्यवादी सन्त-भक्त और कवयित्री माननेवाले इतिहासकार, समालोचक और नये स्त्रीविमर्शकार, इस सम्बन्ध मंे कमोबेश सभी एकमत हैं। मीरां के समाज के सम्बन्ध में प्रचलित ये दोनों धारणाएँ पूरी तरह सही नहीं हैं। उपनिवेशकालीन इतिहासकारों और स्त्री विमर्शकारों ने लगता है, मीरां के समय के सती, वैधव्य, सुहाग आदि विधानों के सम्बन्ध में स्त्री विमर्शकारों की निर्भरता तत्कालीन समाज पर कम, ब्राह्मण शास्त्रों पर ज्यादा है।
मीरां का समाज आदर्श समाज तो नहीं था, लेकिन यह पर्याप्त गतिशील और द्वन्द्वात्मक समाज थां तमाम अवरोधों के बाद भी इसमें कुछ हद तक मीरां होने की गुंजाइश और आजादी थी। इस तरह की गुंजइश और आजादी को स्वीकृति और सम्मान कोई भी समाज तत्काल नहीं देता।
धर्माख्यान-मीरां सामान्य भक्तों से अलग थीं, इस तथ्य की पुष्टि विभिन्न धर्माख्यानों से भी होती है। दरअसल ख्यात, बही, तवारीख आदि पारम्परिक इतिहास रूपों में मीरां का उल्लेख कम है, इसलिए उसके जीवन में सम्बन्धित अधिकांश जानकारियों के स्रोत यही धार्मिक चरित्राख्यान हैं। यों तो ये चरित्राख्यान मीरां के भक्त रूप की प्रतिष्ठा और प्रचार-प्रसार के लिए ही लिखे गये हैं लेकिन इनमें ऐसे संकेत भी मौजूद हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि मीरां अपने समय के सन्त-भक्तों से अलग थीं और उसने सत्ता से अपनी नाराजगी और विद्रोह को समाज में स्वीकार्य बनाने के लिए ही भक्ति का खास रूप गढ़ लिया था। यह भक्ति मध्यकालीन भक्ति के प्रचलित चैखटों से बाहर की थी। धर्माख्यानों में मीरां के चरित्र निरूपण की शुरुआत सोलहवीं सदी के मध्य से होती है।
कविता-मीरां सन्त-भक्त से पहले एक स्त्री है, जो अन्याय और दमन के प्रतिरोध में खड़ी है। उसका यह प्रतिरोध नहीं है। यह भारतीय समाज की निरन्तर गतिशीलता का एक रूप है। इसकी पुष्टि धार्मिक- साम्प्रदायिक आख्यान और मध्यकालीन भारतीय इतिहास भी करते हैं और मीरां की कविता में भी इससे सम्बन्धित पर्याप्त अन्तःसाक्ष्य हैं।
कैननाइजेशन-इतिहास में मीरां की रहस्यवादी और रूमानी सन्त-भक्त और कवयित्री छवि का बीजारोपण उपनिवेशकाल में लेफ्टिनेंट कर्नल जेम्स टाॅड ने किया। टाॅड पश्चिमी भारत के राजपूताना की रियासतों में ईस्ट इंडिया कम्पनी का अधिकारी और पोलिटिकल एजेंट था। इससे पहले तक मध्यकाल में प्रचलित तवारीख, ख्यात, बही, वंशावली आदि पारम्परिक भारतीय इतिहास रूपों में मीरां का उल्लेख नहीं के बराबर था।
निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि इतिहास में मीरां का प्रचलित और लोकप्रिय रूप पूरी तरह टाॅड की निर्मिति है। इस निर्मिति में भारतीय इतिहास की यूरोपीय व्याख्याओं और विश्लेषणों की अलग-अलग विधियों के रुझानों के साझा प्रभाव के साथ टाॅड के राजपूताना और यहाँ के सामन्तों विषयक व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों का भी निर्णायक योगदान है।